बिल्लेसुर बकरिहा–(भाग 2)

सनातन धर्मानुसार मन्नी दुखी हुई कि तरी के सुकुल होने के कारण कोई लड़की नहीं ब्याह रहा।


 पर विवाह आवश्यक है, इस लोक के लिए भी और परलोक के लिए भी। माता-पिता गुजर गये हैं, पानी तो उन्हें मिल जाता है। 

पर माताजी को बड़ियाँ नहीं मिलतीं। बिना गृहिणी के घर में भूत डेरा डालते हैं।

 विचार के अनुसार मन्नी बातचीत करते और जहाँ कहीं अनाथ की लड़की देखते थे।

 डोरे डालते थे। एक जगह लासा लग गया। कहना न होगा, ऐसे विवाह की बातचीत में अत्युक्ति ही प्रधान होती है, 

अर्थात् झूठ ही अधिक यानी एक पैसे की हैसियत एक लाख की बतायी जाती है मन्नी के विवाह में ऐसा ही हुआ।


 लड़की ने माँ का दूध छोड़ा ही था, माँ बेवा थी, कहा गया, रुपये दो तीन सौ लेकर क्या करोगी 

जब कि लड़की को अभी दस साल पालना पोसना है,-वहीं चलकर रहो, घी दूध खाओ और रानी की तरह रहकर लड़की की परवरिश करो। 


बात माँ के दिल में बैठ गयी। मन्नी तब तीस साल के थे; पर चूँकि नाटे कद के थे, इसलिए अट्ठारह उन्नीस की उम्र बतलायी गयी।

 मूछों की वैसी बला न थी। बात खप गयी।

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